सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी भी आरोपी या दोषी का घर बिना उचित प्रक्रिया के ध्वस्त नहीं किया जा सकता, और यह किसी भी हालत में स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने अपने आदेश की शुरुआत में कहा, “अपना घर, अपना आंगन—इस ख्वाब में हर कोई जीता है,” और कहा कि किसी भी व्यक्ति के घर को तोड़ने का मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी अधिकारी बिना उचित सुनवाई के किसी को दोषी नहीं ठहरा सकता और न ही उसकी संपत्ति को तोड़ा जा सकता है। यह फैसला ‘बुलडोजर न्याय’ पर लगाम लगाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, खासकर उन मामलों में जहां गरीबों और हाशिए पर पड़े लोगों के घरों को तोड़ा जाता है।
कोर्ट ने इस मामले में यह भी साफ किया कि महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को रातों-रात सड़कों पर घसीटे जाते हुए देखना एक असंवेदनशील और दुखद दृश्य है। सुप्रीम कोर्ट ने अधिकारियों को चेतावनी दी कि यदि वे कुछ समय के लिए कार्रवाई पर रोक रखते हैं, तो उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।
हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश उन मामलों में लागू नहीं होगा जहां सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन, जल निकाय या सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जे से जुड़ी संरचनाएं हैं। इसके अलावा, जिन मामलों में पहले से ही न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है, वहां भी यह निर्णय लागू नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर किसी तोड़फोड़ के आदेश का उल्लंघन किया जाता है, तो संबंधित अधिकारी को नुकसान का भुगतान करना होगा और ध्वस्त संपत्ति की पुनर्प्राप्ति के लिए उन्हें अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी निभानी होगी। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि प्रभावित पक्ष को अपने खिलाफ जारी ध्वस्तीकरण आदेश को चुनौती देने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।
अदालत ने अंत में कहा, “हमारी यह भी मान्यता है कि जो लोग ध्वस्तीकरण आदेश के खिलाफ विरोध नहीं करना चाहते, उन्हें भी अपनी संपत्तियों को खाली करने के लिए पर्याप्त वक्त मिलना चाहिए।”
यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश भर में बुलडोजर एक्शन की प्रथा को लेकर बहस जारी है, और सुप्रीम कोर्ट का यह निर्देश प्रशासनिक अधिकारियों और कार्यपालिका को यह याद दिलाता है कि उन्हें न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है।