आज की विशेष रिपोर्ट में हम बात करेंगे भारतीय लोक संगीत और छठ गीतों की पहचान, गायिका शारदा सिन्हा के निधन की। छठ पर्व के गीतों से हर घर तक अपनी आवाज़ पहुंचाने वाली शारदा सिन्हा का बीती रात निधन हो गया। उनकी स्थिति पिछले कुछ दिनों से गंभीर थी, और उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था। इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद उनके परिवार से हालचाल लिया।
बिहार की यह महान गायिका न केवल छठ पर्व के लिए बल्कि अपने हर गीत के माध्यम से लोगों के दिलों में बसी हुई हैं। ‘केलवा के पात पर’ और ‘सुनअ छठी माई’ जैसे गीत छठ के दौरान सुने बिना पर्व अधूरा सा लगता है। इनकी लोकप्रियता का कारण उनकी अद्वितीय आवाज़ है, जिसने भोजपुर और मैथिली लोक संगीत को एक नई पहचान दी। इस क्षेत्र में योगदान के लिए उन्हें 1991 में ‘पद्म श्री’ और 2018 में ‘पद्म भूषण’ से नवाजा गया था।
शारदा जी का योगदान बॉलीवुड में भी रहा। सलमान खान और भाग्यश्री की फ़िल्म ‘मैंने प्यार किया’ का मशहूर गीत ‘काहे तो से सजना…’ उनकी मधुर आवाज़ में था, जो सुपरहिट साबित हुआ। इसके अलावा ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘चारफुटिया छोकरे’ में भी उन्होंने अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा।
शारदा सिन्हा का संगीत से लगाव और उनके गीतों का समर्पण उन्हें भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनाता है। साल 2016 में उनके गीत ‘सुपावो ना मिले माई’ और ‘पहिले पहिल छठी मैया’ ने भी लोगों के बीच छठ की छवि को और गहरा किया। उनके निधन से न केवल बिहार बल्कि संपूर्ण देश ने एक महान लोकगायिका को खो दिया है।
शारदा जी की आवाज़ सदियों तक संगीतप्रेमियों के बीच जिंदा रहेगी, और छठ पर्व के साथ उनकी यादें हर साल ताज़ा होती रहेंगी। उनके गीतों ने लोगों के दिलों को जोड़ा और छठ के संस्कार को जन-जन तक पहुँचाया। शारदा जी, हम आपको श्रद्धांजलि देते हैं और आपकी अनुपस्थिति को महसूस करेंगे।