कुंभ मेला क्या महत्व है, क्यों मनाया जाता है और कहां-कहां और कब होता है?

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कुंभ मेला विश्व का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और धार्मिक मेला है, जो भारत में हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होकर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, संतों के प्रवचन सुनते हैं और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करते हैं। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का भी आदान-प्रदान करता है। आइए जानते हैं, कुंभ मेला क्या है, क्यों मनाया जाता है, और इसका आयोजन कहां-कहां और कब होता है।

कुंभ मेला क्या है?

कुंभ मेला क्या महत्व है, क्यों मनाया जाता है और कहां-कहां और कब होता है कुंभ का शाब्दिक अर्थ होता है “घड़ा”, और यह मेला महज एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक महापर्व है। भारतीय संस्कृति में कुंभ मेला सबसे सर्वोपरि माना जाता है। यह परंपरा वैदिक युग से चली आ रही है, जब ऋषि-मुनि नदियों के किनारे बैठकर धार्मिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक रहस्यों पर चर्चा करते थे। आज भी यह परंपरा कायम है, और लोग यहां धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एकत्र होते हैं।

कुंभ मेला का आयोजन क्यों?

कुंभ मेला आयोजित करने के पीछे एक गहरा वैज्ञानिक और धार्मिक कारण है।

  1. वैज्ञानिक कारण: जब कुंभ मेला आयोजित होता है, सूर्य पर विस्फोट बढ़ जाते हैं और इसका असर पृथ्वी पर भी महसूस होता है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि हर 11 से 12 साल में सूर्य पर बदलाव होते हैं, जो पृथ्वी के वातावरण पर असर डालते हैं। ऋषि-मुनि शायद इस घटना को समझते थे, इसलिए इस आयोजन को निर्धारित किया गया था।
  2. धार्मिक कारण: पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता और दैत्यों ने समुद्र मंथन किया, तो सबसे पहले कालकूट नामक विष निकला जिसे भगवान शंकर ने पी लिया और वे नीलकंठ कहलाए। इसके बाद समुद्र मंथन से अमृत घड़ा निकला। देवता और दैत्यों में अमृत के बंटवारे को लेकर संघर्ष हुआ और अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी पर चार स्थानों—हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरीं। तभी से इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित होता है, और इन नदियों का जल अमृत के समान माना जाता है।

कुंभ मेला का आयोजन कहां और कब होता है?

कुंभ मेला भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों—हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में आयोजित होता है, और इन स्थानों पर विशेष ज्योतिषीय गणना के आधार पर मेला मनाया जाता है।

  1. हरिद्वार में कुंभ: जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब हरिद्वार में कुंभ मेला आयोजित होता है। हरिद्वार और प्रयाग के कुंभ के बीच 6 साल का अंतराल होता है, इस दौरान अर्धकुंभ का आयोजन भी होता है।
  2. प्रयागराज में कुंभ: जब सूर्य और चंद्र मकर राशि में और बृहस्पति वृष राशि में होते हैं, तब प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित होता है। प्रयागराज में संगम के तट पर कुंभ मेला होता है, जहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम होता है।
  3. नासिक में कुंभ: जब बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तब नासिक में कुंभ मेला आयोजित होता है। गोदावरी नदी के तट पर यह मेला लगता है और इसे सिंहस्थ कुंभ कहा जाता है, क्योंकि बृहस्पति सिंह राशि में प्रवेश करते हैं।
  4. उज्जैन में कुंभ: जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, तब उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित होता है। इसके अलावा, जब सूर्य और चंद्र के साथ बृहस्पति तुला राशि में होते हैं, तब भी कुंभ मेला उज्जैन में आयोजित होता है।

कुंभ और महाकुंभ का अंतर

कुंभ मेला हर तीन साल में हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में आयोजित होता है। हालांकि, महाकुंभ मेला 12 साल में एक बार होता है, और इसका आयोजन 12 कुंभ मेलों के बाद होता है। महाकुंभ का महत्व अन्य कुंभ मेलों से कहीं अधिक होता है, और इसे खास तौर पर महत्व दिया जाता है।

कुंभ मेला का महत्व

कुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारत की संस्कृति, परंपरा और आस्था का प्रतीक है। कुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एक अद्वितीय आयोजन है जो न केवल भारत से, बल्कि दुनिया भर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

निष्कर्ष

कुंभ मेला भारतीय संस्कृति और धर्म का सबसे बड़ा आयोजन है, जो हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। यह मेला न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जो हर बार श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक उन्नति और जीवन को बेहतर बनाने के सूत्र देता है।

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